तोहमत मार डाले गी
आज की ग़ज़ल
अरे नादान तेरी ये शराफ़त मार डाले
नहीं अच्छी किसी सूरत ये आदत मार डाले गी
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लगाना छोड़ दे दिल को हसीनों से यहाँ ऐ दिल
तू अपने आप से मत कर बग़ावत मार डाले गी
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सँभल करक के उठाना तुम क़दम राहे मुहब्बत में
समझते हो जिसे आसां मुहब्बत मार डाले गी
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गिरा दो मज़हबी दीवार दिल में जो उठा रक्खे
लड़ा कर वरना आपस में सियासत मार डाले गी
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समझ फ़ितरत तू जालिम की जरा अब होश में आ जा
नहीं तो एक दिन तेरी सख़ावत मार डाले गी
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ख़िताबे-बेवफ़ा देकर न ऐसे ज़ुल्म ढाओ तुम
हमें झूठी तुम्हारी जाँ ये तोहमत मार डाले गी
करें कैसे यकीं तुम पर बडे़ जालिम सितमग़र हो
बड़ी ही जानलेवा है मुहब्बत मार डाले गी
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तू खुद को ढाल दे रंग में जहां के देख ले वरना
तुम्हे “प्रीतम” जमाने की अदावत मार डाले गी
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प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
१९/०९/२०१७
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