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5 Apr 2020 · 1 min read

तेरी हर मासूमियत पर मेरा गजल निकला है

ये चाँद जो मेरी गलियों में आजकल निकला है
मानों मेरी राहतों का सफर चल निकला है

देखकर तुझे, कही होश न गवा बैठूं
तो ये दिल तेरी ओर सम्हल-सम्हल निकला है

अजब खूबसूरती का नजारा है तुझमें
जैसे धूप में कोई कमल खिल निकला है

मेरी आरजुये तुझ तक हीं हैं
ऐ सनम तेरे नाम मेरा हर एक पल निकला है

तू खुदा सा लगने लगा है अब तो
तेरी हर मासूमियत पर मेरा गजल निकला है

4 Likes · 1 Comment · 618 Views
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