तेरा इन्तजार
तूने मुझे जिस मोड़ पर छोड़ा था
मैं अभी तक वहीं पर खड़ा हूँ
कई मौसम बदल गए
साहिलों के किनारे आगे बढ़ गए
मगर मैं अभी तक उसी मोड़ पर खड़ा हूँ…
ठंडी हवा चीरती है मेरे दिल को
बरसात की बूंदे तोड़ती है बदन को
मैं खामोश पत्थर की शिला बन खड़ा हूँ
जहाँ तूने छोड़ा था मुझको
मैं अभी तक वहीं पर खड़ा हूँ ….
मेरी खामोशियाँ चीखती है
तेरा नाम लेने से मुझे रोकती हैं
मेरी आँखें चाहती है हो जाये अंधेरा
उजाले में अक्सर वो तुझे ढूढ़ती है
सूरज का मिजाज हरदिन बदल रहा है
मैं वक्त को थामे उसी मोड़ पर ही खड़ा हूँ….
मैं नही चाहता बिखर जाये वो मिट्टी
जहाँ तेरे पैरों के चिन्ह आखिरी थे
नही चाहता खो जाये वो फिजायें
जहाँ तेरे लवो के शब्द आखिरी थे
कैसे भुला दूँ उस सुहानी शाम को
जहाँ तूने हँसकर खुदको बेबफा कहा था
मेरा प्यार जिंदा है उसी मोड़ पर
जहाँ तूने खंजर मेरे दिल पर रखा था….
है ज़िस्म मेरा उसी मोड़ पर
समाई है रूह मेरी उसी फिजा में
जब कभी याद आये मेरी बफा की
लौट आना किसी जनम में भी,
इंतजार करती मिलेगी मेरी जिंदगी
उसी मोड़ पर…