तू कहाँ है?
कहाँ हो तुम,
की मानस ढूंढे तुझे यहॉं, वहाँ
किसी ने ढूंढा तुझे मंदिर-मस्जिद में,
तो किसी ने काबे-कैलाश में,
मृग की कस्तूरी सा तू,
छिपा मनुष्य की साँस में,हर आस में,
तुझे माने सकल जहाँ,
खोजता ना जाने कहाँ, कहाँ
तेरी सर्वश्रेस्ठ रचना ही तुझे नहीं जानती,
रोते भुखे बच्चे को अनदेखा कर,
मंदिर में है दूध चढ़ाती,
शांत बैठ कर तू भी मुस्कुराता है,
मनुष्य की मूर्खता का आनंद उठाता है,
उसी के अंदर हो कर उसी को भरमाता है,
तेरी लीला जाने तू,तू तो सर्वज्ञ है,
फिर भी मनुष्य है खोजता कि तू कहाँ है
कि तू कहाँ है?