तूफान साहिलों पे ठहरने न दे मुझे
आज की हासिल
ग़ज़ल
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अपनी निगाहों से तू उतरने न दे मुझे
मैं बावफ़ा हूँ यार बिख़रने न दे मुझे
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मिलने की तुमसे चाह ये मरने न दे मुझे
ये हौसला बढाता है डरने न दे मुझे
??
कहती हैं कलियाँ रो के बहारों से बस यही
वो बाग़बां ही मेरा सँवरने न दे मुझे
??
जाना तो पार चाहता दरिया के हूँ मगर
तूफान साहिलों पे ठहरने न दे मुझे
??
करता है इतनी नफ़रतें मुझसे मेरा सनम
अपनी गली से वो तो गुज़रने न दे मुझे
??
जीना तो चाहता है ये “प्रीतम” भी हँस के पर
उस बेवफ़ा का दर्द उबरने न दे मुझे
??
??
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
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