तुम हो कैसे इंसान ? (ग़ज़ल)
लगाकर आग तुम तमाशा देखते हो ,
उसी आग में अपने स्वार्थ की रोटियां सेकते हो .
भड़का कर लोगों को तुम्हें क्या सुख मिलता है,
अपने वोट-बैंक के लिए जो इतना गिर जाते हो.
यह लाशों के ढेर /राष्ट्रिय संपत्ति का नुकसान,
नहीं सुनाई देती तुम्हें आहें इतने वेह्शी बन जाते हो.
आखिर तुम हो कैसे इंसान? तुम इंसान हो भी !
सुलझ सकता है जब अमन से ,तुम फसाद करवाते हो.
देश के यह मुश्किल हालात सब तुम्हारी वजह से है,
जटिल समस्याएं खड़ी कर खुद को देशभक्त कहलवाते हो.
तुम तो सियासत दार हो ,पक्के जुयारी हो तुम ,
आवाम में धर्म/जाति /रंग भेद पैदा कर लड़वाते हो.
अरे मेरे देशवासियों ! तुम ही हो जाओ न जागरूक ,
क्यों इन नेताओं के हाथ की कठपुतली बन जाते हो.