*”तुम ही तुम’*
“तुम ही तुम ”
साँवरे सलोने मोहन ,तेरी सूरत मन में बस गई है।
जिधर देखूं उधर तेरी मुस्कान आंखों में ठहर गई है।
बस तुम ही तुम सांसो में समाए हुए हो…..
छेड़े वो बाँसुरिया की मधुर तान,
कानों में जो आके गूंज उठी है।
रिश्तों ने बिछाया जाल माया का ,
उस प्रेम बंधन से जुड़ी हुई हूँ।
तेरे चरणों में जो आके रुकी हुई हूँ।
बस तुम ही तुम सांसो में समाए हुए हो….
जगत की शान शौकत झूठी लगती है मुझे,
ये आंखे भर गई तरस गई ,अब तो चले आओ।
तेरी दरस की प्यासी ,अब दर्शन दिखला जाओ।
बस तुम ही तुम सांसो में बसे समाए हुए हो….
क्यों भटकते रहे हम ,दरबदर इधर उधर से,
तेरे दर पे आके तुझको निहारु नैनो से बार बार।
मेरी नैया भंवर डोल रही है पतवार पकड़ ले ,
ओ माझी बन खिवैया ,भवसागर पार कर दे।
बस तुम ही तुम सांसो में बसे समाये हुए हो…..
खड़ी हूँ तेरे द्वार कबसे आंखे बंद किये हुए ,
कृपा दृष्टि नजरों को घुमा कर अब उद्धार कर दो।
मन की मुरादें पूरी कर दो,अमन चैन शांति जीवन सुखमय कर दो।
बस तुम ही तुम सांसो में बसे समाये हुए हो…….
शशिकला व्यास