***तुम प्रीत रूप हो माँ ***
*तुम प्रीत रूप हो माँ ज्योति स्वरूप हो माँ !!
हिमालय पर्वत से ऊँची सागर सी गहरी हो माँ !!
वायु सी गतिशील साधना शक्ति पुंज हो माँ !!
सृष्टि का आरंभ महाप्रलय का काल भी हो माँ !!
वात्सल्य प्रेम करूणा दया का सागर भी हो माँ !!
बारिश की मूसलाधार बूंदो की फुहार हो माँ !!
स्नेहिल अंनत अथाह सागर का उमड़ती हो माँ !!
चँद्रमा सी शीतलता स्नेहिल स्पर्श की जादू सा
रामबाण हो माँ !!
समस्त सृजन विनाश स्वामिनी विश्व पालिका हो माँ !!
अदृश्य पुष्प गुच्छ की खुशबुओं की सतरँगी बयार हो माँ !!
ढूंढती फिरती हूँ सुँदर मूरत में वही एहसास हो माँ !!
बंद आँखों की पलको की आँचल में सोलह श्रृंगार हो माँ !!
हम सभी चरणों की दासी कृपा बरसाती हो माँ !!
चैतन्य शक्ति को जागृत मधुर संबंध बनाती हो माँ !!
अशांति भ्रांति शोक हृदय पटल से हटाती हो माँ !!
अंध तमस अंबर के अनगिनत तारें जन्नत की सैर कराती हो माँ !!
मान सम्मान अटूट आस्था में प्रखर प्रकाशिका हो माँ !!
आने वाली हरेक पीढ़ीयों का सुखद अनुभव हो माँ !!
हर रँग रूप वेशभूषा में नित नए सोलह श्रृंगार किये हो माँ !!
अंनत शौर्य शालिनी असंख्य विभूतियाँ हर अंश में प्रगटी हो माँ !!
यकीन नहीं होता है हर पल हर क्षण साँसो में समायी हुई हो माँ !!
सुनहरी सी परछाइयों में छिपकर सुखद आश्चर्य छाँव दे जाती हो माँ !!
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***जय माँ अंम्बे जय माँ दुर्गे ***
श्रीमती शशिकला व्यास
भोपाल ***