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23 Jan 2021 · 1 min read

तुम कितना सुख पाओगे

दूसरों की टांग खींचकर तुम कितना उठ जाओगे
औरों को दुख दे देकर तुम कितना सुख पाओगे

अपने पापों को तुम छुपा लोगे दुनिया वालों से
उस दिव्य दृष्टि से लेकिन खुद को कहां छुपाओगे

दूसरों की जेब काटकर अपनी तिजोरी भरने वालों
जब कर्मों की गठरी खुलेगी पुण्य कहां से लाओगे

जाति धर्म के नाम पे तुमने जो इतना खून बहाया है
दामन पे लगे रक्त रंजित दागों को कैसे मिटाओगे

बलिष्ठ सुन्दर काया के अहंकार में आंखें ताढ़े रहते हो
ढलेगी जब जीवन की शाम तब बहुत पछताओगे

पाप और पुण्य का सब लेखा जोखा रखा जाता है
जैसे होगी करनी “अर्श” तुम वैसा ही फल पाओगे

Language: Hindi
2 Comments · 399 Views
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