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26 Mar 2017 · 1 min read

“तुम” – एक गज़ल

मेरी सुबह हो तुम,
मेरी शाम हो तुम!
हर ग़ज़ल की मेरे,
नई राग़ हो तुम!
मेरी आँखों मे तुम,
मेरी बातों मे तुम!
बसी हो जैसे,
मेरी साँसो मे तुम!
हर वादों मे तुम,
हर यादों मे तुम!
सोऊँ मैं कैसे,
मेरे ख्वाबो मे तुम!
मेरा प्यार भी तुम,
एक एहसास भी तुम!
रात है चाँदनी और,
मेरा चाँद भी तुम!
मेरी दवाँ कभी तुम,
मेरी जाँम भी तुम!
ज़िन्दगी का मेरे,
हर ईनाम भी तुम!

(((( ज़ैद बलियावी))))

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