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22 May 2020 · 1 min read

तुम अब निशांत में आये

तुम अब निशांत में आये।
मैं रतिगल्भा सोलहश्रंगार कर,
रोती कलपत रही रातभर।
राह देखते दोनों नयना-
थकित हो गये मुंद गये पलभर।
वायु वेग से खुल गई खिड़की–
हुई भ्रान्ति तुम आये।
तुम अब निशांत…….. ।
आस मुझे थी पिया मिलन की,
मेरे दिल की कली खिलन की,
नहीं आये तुम बनी विरहणी,
रात दुखों की, हुई मधुर मिलन की।
देख दशा गवाक्ष से मेरी-
कुटिलाई से रजनीकांत मुस्काये।
तुम अब निशांत…….. ।
नहीं आना था तो कह जाते,
भाव प्रेम के नहीं जगाते।
धर लेती मैं धीरज मन में,
मुझे वियोगिनी नहीं बनाते।
क्या सुख मिल गया तुमको साजन–
मेरा हृदय क्लांत बनाये।
तुम अब निशांत…… ।
शुष्क हुये मेरे नयन बिल्लौरी,
कुम्हलाई ताम्बूल गिलौरी।
सूख गई भावों की सरिता,
दग्ध हुआ मेरा हृदय हिलोरी।
बीत गई अभिसार की बेला–
पुष्प गुच्छ मेरी वेणी के गये कांत मुरझाये।
तुम अब निशांत…… ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Language: Hindi
5 Likes · 3 Comments · 474 Views
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