तुम्हारी याद को दिल से लगाये फिरते हैं
तुम्हारी याद को दिल से लगाये फिरते हैं
भरे भरे से ये नैना छिपाये फिरते है
हरी भरी सी धरा को धुऐं ने है घेरा
मगर ये आग भी हम ही लगाये फिरते हैं
लिखी हैं ठोकरें ही ठोकरें मुकद्दर में
लिये ये दर्द भी हम मुस्कुराये फिरते हैं
ये लोग जलते हमारी ही कामयाबी से
तभी जुबान से नश्तर चुभाये फिरते हैं
असर हुआ है मुहब्बत का कुछ अधिक गहरा
जो रूप मजनुओं सा वो बनाये फिरते हैं
जरा सा काम हमारे यहाँ वो क्या आये
उसी का देखिये अब गान गाये फिरते है
घमंड ‘अर्चना’ उनको बड़ा है दौलत का
उसी की शान सभी को दिखाये फिरते हैं
डॉ अर्चना गुप्ता
11-11-2017