तीर नज़रों का मेरे दिल पे चला करता है
चंद अशआर
अब रक़ीबों के लिए कौन दुआ करता है
आदमी आग में नफ़रत की जला करता है
2-
जब भी मैं हँसता हुआ देखता हूँ उसको तो
तीर नज़रों का मेरे दिल पे चला करता है
3-
अपनी नरमी को नहीं छोड़ता है फूल कभी
जबकि गुल काँटों के साये में पला करता है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)