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20 Apr 2017 · 1 min read

तितली की झुंड मेरे मन को लुभा गई

मौसम बसंती आया हरियाली छा गई
दुलहन बनी जमीं है सिंगार पा गई

ठूंठे सभी शज़र थे बीमार जैसे थे
चेहरा खिला खिला है रौनक़ सी आ गई

अब वो कली हमल में पर्दा नसीं थी जो
कुदरत ने हाथ फेरा जान उसमे आ गई

होकर सयानी वो कली मदमस्त हो गई
भौंरे दिवाने कहते क़यामत है ढा गई

नग्में सुना रही है कोयल भी मस्ती में
तितली की झुंड मेरे मन को लुभा गई

छाई बहार हर सूं बहका हुआ समां
,”प्रीतम” सभी दिलों में खुशहाली आ गई

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