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12 Mar 2017 · 1 min read

** यूं ही नहीँ **

महक मेरे दिल की बहुत दूर तलक जाती है
यूं ही नहीं तितलियां मेरे इर्द-गिर्द मंडराती है
ढूंढती मुझको है कस्तूरी मृग की भांति और
मदमस्त अपने ही नशे में मजबूर हो

जाती है ।।
?मधुप बैरागी

सो गयो कई ख्वाब ले कर
खो गये कई ख्वाब पा कर
रह गये ना सोने वाले अब
खो गया चैन नींद खोकर ।।
?मधुप बैरागी

निखर लूं चाँद तुझसे बेहतर मैं
कर श्रृंगार सोलह होले होले मैं
रीझ जायेगा प्रीतम मेरा मुझ पे
तेरी चांदनी -रूपोज्वल हो लूं मैं ।।
?मधुप बैरागी
दिल चाहता है आज फिर मेरा
अपनी जां को जां अपनी दे दूं
या फिर अपनी जां से अपनी जां
वापस ले लूं और बेजान कर दूं ।।
?मधुप बैरागी

मैं अगर मौत का सौदागर बन जाऊं
तो पहले मौत खरीद अपने लिए लाऊं
ना आऊं दुनियां में लौटकर-लौटकर फिर
फिर औरों को चैन की गहरी नींद सुलाऊं।।
?मधुप बैरागी

Language: Hindi
1 Like · 309 Views
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