ताटंक छंद
राम नाम ही सत्य है
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राम नाम का रस पीते जा, मिथ्या दुनियादारी है।
आया है जो भी इस जग में, सब पे यही उधारी है।।
मोहपाश में बँधकर प्यारे, जीवन व्यर्थ गँवाता है।
अपना कौन पराया क्या है, समझ कहाँ तू पाता है।।
आयाथा किस कारण जग में,समझ नही क्यों आता है?
माया मोह के वसीभूत न, राम नाम तू गाता है।।
भूल गया तू राम नाम को, कैसी यह खुद्दारी है।
राम नाम का रस पीते जा, मिथ्या दुनियादारी है।।
पंचतत्व से निर्मित काया, नश्वर है मिट जाना है।
रंगमंच से पटाक्षेप कर, सबको ही तो जाना है।।
रिक्त हाथ ही आया जग मे, कुछ भी ना ले जायेगा।
राम नाम से मुख फेरा जो, मरकर भी पछतायेगा।।
फिर काहे की मारामारी, कैसी पैरोकारी है।
राम नाम का रस पीते जा, मिथ्या दुनियादारी है।।
राम नाम से मिष्टी बोलो, जग में कौन मिठाई है?
राम नाम बिन जीवन जीना, बौद्धिक नहीं ढिठाई है।।
छोड़ छाड़ क्यों मार्ग सत्य का, मिथ्या को अपनाता है।
जिसको मिथ्या मान रहा है, उससे गहरा नाता है।।
नाम बनाने की बोलो अब, कैसी लगी बिमारी है।
राम नाम का रस पीते जा, मिथ्या दुनियादारी है।।
***** स्वरचित, स्वप्रमाणित
✍️पं. संजीव शुक्ल “सचिन”