तांटक छंद की परीभाषा और कविता-
तांटक छंद की परिभाषा और कविता
परिभाषा-
तांटक छंद में चार पद होते हैं।
प्रत्येक पद में सौलह चौदह की यति पर तीस-तीस मात्राएँ होती हैं।
हर पदांत में तीन गुरू मात्राएँ आती हैं।
तांटक छंद की कविता
#गुरु की महिमा
गुरु से बढ़के कौन धरा पर, जो मंज़िल दिखलाता है।
खुद जलता है दीपक बनके, पर तम दूर भगाता है।
नहीं स्वार्थ निज मन में रखता, सबको ज्ञान सिखाता है।
भविष्य शिष्यों का उज्ज्वल कर, फूला नहीं समाता है।
लोहे को कुंदन कर देता, मन-विष अमृत बनाता है।
पथ के काँटें फूल बनाकर, सुरभियुक्त कर जाता है।
कहे कबीरा गुरु नाम सदा, रब से पहले आता है।
उस तक जाने का मार्ग यहाँ, गुरु ही तो बतलाता है।
गुरु के चरणों में स्वर्ग मिले, शुभ कर्मों का दाता है।
समदर्शी आचरण बनाए, मन का भेद भगाता है।
सुरभित करता मन का कोना, आदर ज्ञान सिखाता है।
इंद्रधनुष-सा करता जीवन, सद्गुरु वह कहलाता है।
सुप्त-शक्तियाँ जोश जगाए, उत्सुकता सिखलाता है।
प्यासे मन की प्यास बुझाने, ज्ञान कूप हो जाता है।
चाणक्य स्वयं को कर लेता, द्वार जीत खुलवाता है।
जीत दिलाकर चंद्रगुप्त को, विजयी खुद हो जाता है।
#आर.एस.’प्रीतम’