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9 Mar 2018 · 1 min read

तसव्वुर का नशा

तसव्वुर का नशा गहरा हुआ है
दिवाना बिन पिए ही झूमता है // मतला //

नहीं मुमकिन मिलन अब दोस्तो से
महब्ब्त में बशर तनहा हुआ है // 1. //

करूँ क्या ज़िक्र मैं ख़ामोशियों का
यहाँ तो वक़्त भी थम-सा गया है // 2. //

भले ही खूबसूरत है हक़ीक़त
तसव्वुर का नशा लेकिन जुदा है // 3. //

अभी तक दूरियाँ हैं बीच अपने
भले ही मुझसे अब वो आशना है // 4. //

हमेशा क्यों ग़लत कहते सही को
“ज़माने में यही होता रहा है” // 5. //

गुजर अब साथ भी मुमकिन कहाँ था
मैं उसको वो मुझे पहचानता है // 6. //

गिरी बिजली नशेमन पर हमारे
न रोया कोई कैसा हादिसा है // 7. //

बलन्दी नाचती है सर पे चढ़के
कहाँ वो मेरी जानिब देखता है // 8. //

हमेशा गुनगुनाता हूँ बहर में
ग़ज़ल का शौक़ बचपन से रहा है // 9. //

जिसे कल ग़ैर समझे थे वही अब
रगे-जां में हमारी आ बसा है // 10. //

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