तमाचा …… बॉलीवुड के नकलचियों के मुंह पर ( हास्य -व्यंग्य रचना )
आप बनी हुई सुंदर रचना को बिगाड़ने से बाज़ आइए ,
बहुत हो गयी नकल अब अपनी औकात पे आ जाइए ।
हमें एहसास है आपके पास है उम्दा विषयों की कमी ,
मगर पुरानी फिल्म /गीत /रचना के विषयों को न चुराइए ।
अज़ीम नगमा निगार /शायर गुज़र गए,क़ज़ा पर किसका ज़ोर ,
अज़ीम गायक भी न रहे मगर उनकी रूह को तो चैन लेने दीजिये ।
कला अपने आप में अज़ीम है ,है खुदा की नियामत / नज़राना ,
मेहरबानी करके इसकी पाकीज़गी को नापाक तो न कीजिये ।
कला में साधना है ,ईमान होता है ,कोई खाला जी का घर नही ये,
इसे झूठी शोहरत,नाम और दौलत के तराज़ू से ना तौलिये ।
पुराने फनकारों, गायकों, शायरों में था मेहनत /लगन का जज़्बा ,
आप इन सब का एक गुण भी अपना सके तो ज़रूर अपनाईए ।
उर्दू -अदब और हिन्दी साहित्य की महत्ता को तो किनारे कर दिया ,
भला इनके बिना जज़्बातों में आएगी कैसे जान ,यह बतलाईए ।
अपने देश की संस्कृति /सभ्यता ,संस्कारों को भी आपने भुला दिया ,
देखिये ज़रा अपना गिरेबा ,कुछ तो शर्म किसी से उधार ही ले लीजिये ।
है तो आप कला की नगरी ,मगर कला से कोई दूर का वास्ता नहीं आपका ,
खुदाया ! कला के नाम पर अब तो बेहयाई और हिंसा परोसना बंद कीजिये ।
”अनु” की गुजारिश है आपसे ,आप अपने ओछेपन से बाज़ आ जाइए ,
देश भक्त बनिए ,देश सेवक बन देश की युवा पीड़ी को सही दिशा दीजिये ।