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10 Aug 2020 · 1 min read

तब तुम कविता बन जाती हो

तब तुम कविता बन जाती हो
*** *** ***
झरनें की कल कल में,
खग चहके जल थल में,
सूर्य किरण तेज़ फैलाये
पवन भीनी सुगंध बहाये
जब प्रकृति सुंदरता बिखराती हो,
तब तुम कविता बन जाती हो ।
कलम के सहारे,
मेरे दिल पात्र में उतर आती हो !!

संध्या में रवि डूबे,
चंद्र निशा में झूमें
तारक दीप्ती फैलाएं
नभ रौशनी में नहाएं
जब चकोर चांद पर इतराती हो,
तब तुम कविता बन जाती हो ।
कलम के सहारे,
मेरे दिल पात्र में उतर आती हो !!

!

स्वरचित: डी के निवातिया

Language: Hindi
3 Likes · 6 Comments · 463 Views
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