तन्हा कब थी मैं
तन्हा कब थी मैं, साथ तन्हाई तो थी।
खामोशी कब थी,रोती शहनाई तो थी।
डूबने ही नही दिया साँसो के बोझ ने,
समुद्र मे भी वर्ना, ऐसी गहराई तो थी।
जीने के लिये क्यू सहारा ढूंढते हम
ग़म थे,यादें थी ,तेरी बेवफाई तो थी।
सोचती हू कहां भूल आई हू तुम को
कुछ बाते खुद से ,मैने छिपाई तो थी।
उठते देखा था जब जनाजा वफा का
खुशक आँखे मेरी ,डबडबाई तो थी।
एक तेरे न आने से ,रुक गई थी साँसे
इंतजार मे तेरे, पलके बिछाई तो थी।
एक खिजां का मौसम ठहर सा गया है
जिंदगी मे कभी यू,बहार आई तो थी।
Surinder kaur