Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Oct 2017 · 4 min read

डिफ़ाल्टर

डिफाल्टर

प्रवीण कुमार

हमारे गाॅव में एक परमानन्द जी का परिवार रहता था। षाम को जब मेहनतकष मजदूर,बटोही घर पहॅुच कर विश्राम की मुद्रा में होते थे तब परमानन्द जी के यहाॅ महफिल जमा करती थी। रात्रि के सन्नाटे को चीरती हंसी ठहाके खिलखिलाने की अवाज से लोग ये अन्दाज लगा लेते थे। कि परमानन्द जी का परिवार अभी तक जगा हुआ है। इस तरह कहंे तो गाॅव की रौनक इस परिवार से ही थी। वर्ना दीन-दुखियों, षराबी -कवाबी,जुआरियो,ं सट्टेबाजो, नषेडी भगेंडी लोगो की कमी नही थी हमारे गांव में ।
हमारा गांव यमुना पार बसा हुआ था। बस थोडी ही दूर पर रेलवे स्टेषन बस अड्डा, पोस्ट आॅफिस भवन पास-पास ही थे । मेरे पिता जी तब स्टेषन सुप्रीटैन्डेन्ट हुआ करते थे लोग आदर से उन्हे वर्मा जी कहा करते थे । वैसे उनका पूरा नाम श्री प्रेम चन्द्र प्रसाद वर्मा था । कभी-कभी पिता जी परमानन्द जी की महफिल में भी षामिल हुआ करते थे । हम तब बच्चे हुआ करते थे और पिता जी एवं परमानन्द जी की रसीली सार्थक बातो को ध्यान से सुना करते थे ।
श्री परमानन्द जी चार भाई थे सबसे बडे़ परमानन्द जी स्वंय, दुसरे नम्बर पर भजनानन्द, तीसरे नम्बर पर अर्गानन्द और चैथे नम्बर पर ग्यानानन्द जी थे चारो भाइयेां में क्रमषः दो वर्षो का अन्तर था। परमानन्द जी 60 वर्ष के पूरे हो चुके थे। चारो भाई परम आध्यात्मिक एवं अग्रेजी संस्कार के परम खिलाफ थे। घर में बहुयें घूघट में रहती थी व बच्चे दबी जुवान में ही बात कर सकते थे । बडे संस्कारी बच्चे थे ये सब भ्राता आर्युवेद एवं षास्त्रो के बड़े ज्ञाता थे। अग्रेजी औषधियों का सेवन भी पाप समझते थे ।
एक दिन की बात है परमानन्द जी के सिर मे दर्द उठा फिर चक्क्र भी आया हृस्ट पुस्ट षरीर में मामूली सा चक्क्र आना उन्हे कोई फर्क नही पड़ा । वे वैसे ही मस्त रहा करते थे। अचानक एक दिन साइकिल से जाते वक्त सबजी मण्डी के पास उनकी आखों के आगे अन्धेरा छाने लगा व जोर से चक्कर आया वे गिर पडे़। लोग उन्हे उठाने दौड़ पडे लोगो ने उन्हे अस्पताल पहुचाया उनका रक्त-चाप अतयन्त बढ़ा हुआ था। डाक्टर साहब ने अग्रंेजी दवाइयां खाने को दी, जो जीवन रक्षक थी लोगो के लिहाज या डाक्टर साहब की सलाह मान कर उन्हानें दवाइयां ले ली परन्तु उन्हे इन दवाइयांे का सेवन जीवन भर करना मंजूर नही था। अतः उन्होने कुछ दिनो के पश्चात इन दवाइयों का सेवन बन्द कर, जडी़ बूटियो ं और परहेज पर विष्वास करना षुरू कर दिया।
कुछ दिन बीते कुछ पता ही नही चला । उच्च रक्त-चाप कोई लक्षण प्रर्दषित नही कर रहा था अतः उन्होने सब कुठ ठीक मानकर औषधीयों का सेवन भी बन्द कर दिया ।
अब तक दो वर्ष बीत चुके थे। परमानन्द जी प्रातः उठे तो प्रकाष के उजाले में उन्होने बल्ब की रोषनी में इन्द्र धनुषीयें रंग नजर आने लगा बायां हाथ और बायां पैर कोषिष करने के बावजूद कोई गति नही कर रहा था । कुछ -कुछ जुवान भी लडखडा रही थी मुह भी दायी और टैढा होे गया था पल्के बन्द नही हो रही थी सारे लक्षण पक्षाघात के प्रकट हो चुके थे डाक्टर को बुलाया गया, उस समय हमारी तरह 108 एम्बुलेैंस नही हूुआ करती थी कि फोन लगाओ और एम्बुलेैंस हाजिर और उपचार षुरू बल्कि डाक्टर महोदय बहुत अष्वासन एवं मोटी फीस लेकर ही घर में चिकित्सा व्यवस्था करने आते थे ।
डाक्टर का मूड़ उखडा हुआ था जब उन्हे ये मालूम हुआ कि उच्च रक्त-चाप होते हुये भी परमानन्द जी ने औषाधियों का सेवन दो वर्ष पहले ही बन्द कर दिया था ।उसके बाद न तो रक्त-चाप ही चेक कराया न ही कोई परामर्ष लिया । डाक्टर के मुह से अचानक निकला डिफाल्टर, ये तो बहुत बडा डिफाल्टर है जान बूझकर भी इसने दवाइयों का सेवन नही किया न ही सलाह ली । नतीजतन इसको अन्जाम भुगतना पडा़ अब इसका कुछ नही हो सकता इसे मेडिकल काॅलेज ले जाओ तभी इसकी जान बच सकती है। अभी पक्षाघात हुआ है अगर हृदयाघात भी हुआ तो जान भी जा सकती है।
परमानन्द जी के परिवार पर मुसीबत का पहाड़ सा टूुट पडा़ था। ंआनन फानन में वाहन की व्यवस्था कर उन्हे मेडिकल काॅलेज ले जाया गया। डाक्टरो के निरंतर प्रयासो से परमानन्द जी की जान तो बच गयी परन्तु वे जीवन भर बैसाखी के सहारे जीते रहे ।
हिन्दी अग्रजी संस्कारो के टकराव ने औषाधियों और मानव जीवन में भी भेद कर दिया था चिकित्सा विज्ञान की कोई जाति नही होती कोई धर्म नही होता है। चिकित्सा विज्ञान देष की सीमाओ से परे केवल मानवता के हित में होता है उसका उददेषय जीवन के प्रत्येक क्षणो को उपयोगी सुखमय एवं स्वस्थ्य बनाना होता है। अतः डिफााल्टर कभी मत बनिये ंहमेषा डाक्टर की सलाह को ध्यान से सुनये व पालन कीजिये तभी मानवता की दृष्टि में चिकित्सा विज्ञान का अहम येागदान हो सकता है ।
नोट-उच्च रक्त-चाप दिवस पर विषेष कहानी।

Comments

Language: Hindi
4 Likes · 1 Comment · 350 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
सिर्फ़ वादे ही निभाने में गुज़र जाती है
सिर्फ़ वादे ही निभाने में गुज़र जाती है
अंसार एटवी
वो मेरी कौन थी ?
वो मेरी कौन थी ?
सुशील कुमार सिंह "प्रभात"
Dr arun kumar शास्त्री
Dr arun kumar शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
किस्सा मशहूर है जमाने में मेरा
किस्सा मशहूर है जमाने में मेरा
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
मुझे तो मेरी फितरत पे नाज है
मुझे तो मेरी फितरत पे नाज है
नेताम आर सी
मैथिली हाइकु कविता (Maithili Haiku Kavita)
मैथिली हाइकु कविता (Maithili Haiku Kavita)
Binit Thakur (विनीत ठाकुर)
मां बताती हैं ...मेरे पिता!
मां बताती हैं ...मेरे पिता!
Manu Vashistha
😊आज का ज्ञान😊
😊आज का ज्ञान😊
*Author प्रणय प्रभात*
रिश्तों में झुकना हमे मुनासिब लगा
रिश्तों में झुकना हमे मुनासिब लगा
Dimpal Khari
कुण्डल / उड़ियाना छंद
कुण्डल / उड़ियाना छंद
Subhash Singhai
दोस्त
दोस्त
Pratibha Pandey
संस्कृति वर्चस्व और प्रतिरोध
संस्कृति वर्चस्व और प्रतिरोध
Shashi Dhar Kumar
बचपन और पचपन
बचपन और पचपन
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
आखिरी वक्त में
आखिरी वक्त में
Harminder Kaur
हम हिंदुस्तानियों की पहचान है हिंदी।
हम हिंदुस्तानियों की पहचान है हिंदी।
Ujjwal kumar
वचन मांग लो, मौन न ओढ़ो
वचन मांग लो, मौन न ओढ़ो
Shiva Awasthi
हे मनुज श्रेष्ठ
हे मनुज श्रेष्ठ
Dr.Pratibha Prakash
जन्नत
जन्नत
जय लगन कुमार हैप्पी
कर रही हूँ इंतज़ार
कर रही हूँ इंतज़ार
Rashmi Ranjan
कोरे कागज़ पर लिखें अक्षर,
कोरे कागज़ पर लिखें अक्षर,
अनिल अहिरवार"अबीर"
टेलीफोन की याद (हास्य व्यंग्य)
टेलीफोन की याद (हास्य व्यंग्य)
Ravi Prakash
23/64.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/64.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
पत्थर
पत्थर
manjula chauhan
शेष न बचा
शेष न बचा
Er. Sanjay Shrivastava
पूछ रही हूं
पूछ रही हूं
Srishty Bansal
जाने वाले बस कदमों के निशाँ छोड़ जाते हैं
जाने वाले बस कदमों के निशाँ छोड़ जाते हैं
VINOD CHAUHAN
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
सत्य = सत ( सच) यह
सत्य = सत ( सच) यह
डॉ० रोहित कौशिक
“कब मानव कवि बन जाता हैं ”
“कब मानव कवि बन जाता हैं ”
Rituraj shivem verma
परिस्थितियां अनुकूल हो या प्रतिकूल  ! दोनों ही स्थितियों में
परिस्थितियां अनुकूल हो या प्रतिकूल ! दोनों ही स्थितियों में
Tarun Singh Pawar
Loading...