डर
वर्दी वाले आठ मर गये,
रोष यही मुझको भी है,
गद्दारी अपनों ने ही की,
चिंता यही हमें भी है।
अब तो डर लगता है हमको,
तुम पर विश्वास करूँ कैसे?
बस अब इतनी सी चिंता है,
किस पर कैसे मैं आस करूँ?
वर्दी वाले आठ मर गये,
रोष यही मुझको भी है,
गद्दारी अपनों ने ही की,
चिंता यही हमें भी है।
अब तो डर लगता है हमको,
तुम पर विश्वास करूँ कैसे?
बस अब इतनी सी चिंता है,
किस पर कैसे मैं आस करूँ?