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11 May 2020 · 3 min read

टेंगनमाड़ा का करोनामय वातावरण

करोना ने कुछ इस कदर मारा है
मेरे गाँव का भी बदल गया सारा नजारा है
सोचता हूँ क्या से क्या हो गया, क्या अभी जारी है?
टेंगनमाड़ा की सड़कों पर करोना बहुत भारी है
सड़कें खामोश, लोग गायब
लग रहा है जैसे गाँव बन गया है अजायब
सभी अपने घरों में नजरबंद हैं
लापरवाही वाले भी गलियों में चंद हैं
स्टेशन चुपचाप रहते हैं
मालगाड़ियाँ आती है तो जींदा है हम वो कहते हैं
लाइनें भी भार से मुक्त हो कर गा रही हैं
कहती हैं हम पर अब गाडियां नहीं आ रही है
लोग सड़कों पर कम पटरियों पर ज्यादा चलते हैं
सड़कें भी बैठे बैठे अपने दोनों हाथ मलते हैं
आज राह भी आने जाने वालों का राह ताक रही है
खामोशियाँ हर जगह छुप के खिडकियों से झांक रही है
कहने को तो बाजार बंद है
पर राशन की दुकानों में ऊंचे दामों के फिकरमंद हैं
जिन्हें पैसा ही खुदा दिखता है
लेना है तो लो वरना हमारा तो रोज ही बिकता है
तुम कौन सा अहसान कर दोगे ले के हमारा समान
और ज्यादा मत उठाओ अपने सिर पर आसमान
कुछ लोग कैरम का मजा लेते हैं
कुछ लोग उनकी फोटो थाने में भेज देते हैं
ये भी देशभक्ति की मिशाल है
उन लोगों को अपने गिरेबान में झांकने की क्या मजाल है?
मानता हूँ घटना बुरी है
लेकिन ऐसा करना भी तो चुगलखोरी है
मैं भी उसका अंग हूँ
इस अपनेपन को देखकर बहुत दंग हूँ
गाँव में जब भी कोई सायरन सुनाई देता है
आदमी उठ कर भागता है और फिर दरवाजे बंद कर लेता है
न जाने किस रुप में आ जाये भगवान
ड़डे के साथ अवतार में उपस्थित होते हैं करुणा निधान
जो भाग नहीं पाता है
उसे पुलिस का प्रसाद दिया जाता है
दहशत, आतंक और डर
आदमी भला भागकर जायेगा किधर
पुलिस अपना काम कर रही है
हमें डरा कर सजग कर रही है
और हम उनका काम बढ़ा रहे हैं
वो कहते हैं घरों में रहो और हम सड़कों पर आ रहे हैं
आजकल सब्जियां भी अपने चहरे दिखा रही है
खुद चलकर हमारे घरों तक आ रही है
मौसम हर रोज एक नया करवट बदलता है
सुबह कड़ी धूप और शाम को बादल घूमने निकलता है
तेज हवायें भी साथ लाता है
मूड होता है तो पानी भी कस के गिराता है
शाम होते ही ताश के पत्ते जैसे हिलते हैं
कुछ लोग आपस में बैठकर एक जगह मिलते हैं
मेरे घर के सामने चौपाल होती है
मुद्दा कुछ भी हो इसी बहाने बोलचाल होती है
मरहीमाता की सड़कें खुलकर सांस ले रही हैं
कहती हैं धन्य है करोना हमको भी चैन से जीने दे रही है
बकरे भी खुश,बंद हुई बलि है
माता के आशीर्वाद देने में विश्राम की प्रथा चली है
कुछ लड़के मेरी तरह के क्रिकेट रोज खेलते हैं
मोहल्ले वालों की गालियां भी हंस के झेलते हैं
सड़क की गाडियों को कहतें है संभल के जाना
भगवान के लिए वापस मत आना
क्या करियेगा बड़े अजीब से मेरे गाँव के हालत हैं
कविता कुछ नहीं बस समझिये यही मेरे जज्बात हैं
घर पर रहें और धैर्य दिखायें
आओ मिलकर करोना को हरायें
यदि मजबूत हमारी पूरी तैयारी होगी
तो हर हाल में करोना के हारने की बारी होगी
करोना के योद्धाओं का करें पूरा सम्मान
तभी हो पायेगा इस विपदा से समाधान
जय हो, मंगल हो
सबका भला हो शहर हो या जंगल हो

पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख के साथ
गंवार लुक लिए हुए
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.

Language: Hindi
5 Likes · 1 Comment · 413 Views
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