*टूटे ख्वाबों की तसवीर*
टूटे हुए ख्वाबों की तसवीर बनाई है मैंने,
ग़मों में मुस्कराने की तासीर बनाई है मैंने।
भरा है सैलाब इन बेजुबान आँखों में,
जिसे छुपाने की तदवीर बनाई है मैंने ।1।
यूँ तो आते हैं अकेले सभी इस ज़माने में,
लग जाते हैं अपनी तक़दीर अजमाने में ।
जीते हैं ग़मों में, कुछ खुशियों में जीते हैं ,
सिर्फ़ ग़मों से भरी तक़दीर बनाई है मैंने ।2।
देखा है बिखरते कई नसीबों को यहाँ मैंने
जूझते रोटी की ख़ातिर बदनसीबों को मैंने ।
दर-दर भटकती इंसानियत बेबाक बेकल-सी,
अजीब-ओ-गरीब तफ़सील बनाई है मैंने ।3।
गिला ना अब कोई शिकवा मुझे ज़माने से,
पाया क्या, खोया क्या हमने इस ज़माने से।
लिखा जो मुकद्दर में मुकर्रर किया खुदा ने,
‘मयंक’ उसी से नई तसवीर बनाई है मैंने ।4।
✍ के.आर.परमाल ‘मयंक’