झूठे
आजकल अपने आप से ही हम ,रूठे रूठे रहते है।
सुख की बातें बेमानी हैं ,सब झूठे झूठे लगते है।
किससे मिलना, किससे जुलना ,तय तमाम हो पाता नहीं,
इस बेपरवाह जिंदगी में ,बेगाने समूचे लगते हैं।
-सिद्धार्थ पाण्डेय
आजकल अपने आप से ही हम ,रूठे रूठे रहते है।
सुख की बातें बेमानी हैं ,सब झूठे झूठे लगते है।
किससे मिलना, किससे जुलना ,तय तमाम हो पाता नहीं,
इस बेपरवाह जिंदगी में ,बेगाने समूचे लगते हैं।
-सिद्धार्थ पाण्डेय