झूठी तारीफ मैं नही करता
बाग में खिलती रात रानी है
जिसके दम से फिजां सुहानी है
भूख लगती नही अगर तुमको
ये तो उल्फ़त की ही निशानी है
हसरतें कब की जल चुकीं मेरी
खाक़ लेकर के अब उड़ानी है
पत्थरों पे शज़र मुहब्बत के
आज हम सब को ही उगानी है
झूठी तारीफ मैं नहीं करता
साफ कहना ही सच बयानी है
दिल लगाना आम है लेकिन
प्यार कहते जिसे रुहानी है
है जहाँ पर अंधेरा नफरत का
प्यार की एक लौ जलानी है
इश्क़ तो रब का फक़्त है सच्चा
वर्ना दुनिया को समझो फानी है
माँ का आदर न कम करो “प्रीतम”
वो तो करती निगेहबानी है