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31 Jul 2016 · 1 min read

झुलस

धरती के झुलसते आँचल को
अम्बर ने आज भिगोया है
झूम उठे वायु संग तरुवर
बूंदों में शीत पिरोया है
ये महज़ एक झांकी है
सोचो हमने क्या खोया है
हुई ताप वृद्धि क्यों ऐसे
क्यों वातानुकूलन रोया है
सूख गए जल श्रोत क्यों ऐसे
फिर भी मानव तू सोया है
बार बार कहा विद्जन ने
प्रकृति का सम्मान करो
जो भी दिया है ईश्वर ने
सोच समझकर मान करो
मत भटको अंधी दौड़ में
मत झूठा अभिमान करो
रहो आभारी सर्वोच्च शक्ति के
मत कोई अपमान करो
करो संयमित जीवन अपना
सच्चे सुख का भान करो
प्रीत से पूरित संस्कृति भारत की
एक ही ईश गुण गान करो
वातावरण से करो संयोजन
नव ऊर्जा संचार करो
लेता करवट मौसम कब कैसे
सूझ बूझ से अब काम करो
करो सरक्षित जल श्रोतो को
खुद पर तुम उपकार करो
आज प्रातः बादल यही बोले
प्रातः ईश प्रणाम करो
नहीं मात्र मनो ये कविता
थोडा तो सो विचार करो

Language: Hindi
11 Likes · 521 Views
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