झनक
झनक आती रही
हम बजाते रहे
वो बुझाती रही
हम जलाते रहे.
उनके जोर जुल्म
उस दीये को
बुझा न सके.
जो सबको मिला.
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रात आती
कभी चांदनी लेकर
कभी खुद सो जाती
लौरिया सुनाकर,
रोक लिये आंगन,
सतत देखकर,
छाया है,
ढलती भी है.
हर हुजूम पर.
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डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस