जड़ों से दूरियाँ
जड़ो से दूरियाँ
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आज समाज की
बिडम्बना देखिए
आदमी अपनी ही दरख्त
खोद रहा है,
और तो और जी भरकर
मट्ठा भी उड़ेल रहा है।
अपने ही भविष्य का
कुछ ख्याल भी नहीं,
अगली पीढ़ी को
जाने अन्जाने
यही सीख दे रहा है।
आपाधापी के इस युग में
रिश्तों का अहसास
बहुत पीछे छूट रहा है।
घर वीरान से हो रहे
वृद्धाश्रम आबाद हो रहे।
हमारे दरख्त सूख रहे हैं,
मरने से पहले भी
बे मौत मर रहे हैं।
अब तो ये कहना भी बेमानी है,
कि मौत तो बस
एक बार ही आनी है।
कुछ ऐसी ही आज की
राम कहानी है।
✈सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921