जो मोम के थे बुत वही पत्थर के हो गये
जो मोम के थे बुत वही पत्थर के हो गये
परिणाम हाथ मे जो मुकद्दर के हो गये
जब छूटे रिश्ते खून के ,दिल के हुऐ शुरू
हम एक घर से दूसरे ही घर के हो गये
जब जा समाई ये नदी सागर की गोद में
फिर दर्द उसके सारे समन्दर के हो गये
अमृत नहीं मिलता है अमर होने को यहाँ
पर कुछ तो कर्मों से ही अमर मर के हो गये
सब फ़र्ज़ पूरे हो गये , खाली हैं ‘अर्चना’
अब छोड़ डोर मोह की गिरधर के हो गये
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद ??
03-11-2017