जो बू-ए-तनफ्फुर को फैलाए वो
वो ममता की मूरत वही प्यार है
अभी याद मां की वो पुचकार है
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सहारा नवोदित का परिवार है
ये उत्थान का एक आधार है
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बड़े ही जतन से निखारें यहां
सभी गुरु जनों को नमस्कार है
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चले आओ संकोच कुछ न करो
जिधर देखिये प्यार ही प्यार है
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हसीं तो बहुत हैं जहां में मगर
ये दिल तो तुम्हारा तलबगार है
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खुदा बस उसी की है सुनता सदा
ग़रीबों का जो —- भी मददगार है
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बिता लो खुशी से सनम जिंदगी
अजी छोड़िये कैसी तकरार है
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मिलन आज —- होके रहेगा मिरा
किया उसने —–हमसे ये इकरार है
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जो बू-ए-तनफ़्फुर को फैलाए वो
समझ लो बड़ा ही –वो मक्कार है
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छुरा घोंप दे ——-जो कभी पीठ में
नहीं यार ————वो कोई गद्दार है
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उन्हें खंजरों की — जरूरत है क्या
वो नैनों के जिनके —दो हथियार हैं
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सिखाया हमेशा बुजुर्गों ने ये
जहां ये हमारा तो परिवार है
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मिली नाज़नीं जब से देखा उसे
तभी से मेरा दिल ये बीमार है
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अभी जाने दो अब न रोको मुझे
सनम फिर — मिलेंगे न इंकार है
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जिन्हें तुम समझते हो उल्फ़त सनम
नहीं फूल हैं ———— दामने खार है
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नहीं गर निभाए ——- ये इश्के वफा
सजा देना “प्रीतम”——- गुनहगार है