जूते की उपलब्धता
मुझसे किसी ने पूछा ; भाया जूते कहाँ व कैसे मिलेंगे?
मैने कहा मैं कवि हूँ
कविता ही सुनाऊँगा,
पद्य के सहारे, उपलब्धता बताऊँगा।
बोला मुझे जल्दी है
यूं ना सताईये
जैसे भी बन पडे
उपलब्धता बतलाईये।
मैने कहा
ऐसे जूते वैसे जूते
जाने कैसे कैसे जूते
नीयत होती जिसकी जैसी
उसको वैसै – वैसे जूते।
गुण पे शून्य
अवगुण पे जूते,
शब्द गलत तो पडते जूते
मोल तोल के बल बूते
पैसों से मिलते हैं जूते,
गर कंगाली पौकेट खाली
मंदिर से जा साध ले जूते।
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
9560335952