— जुल्म —
आज के हालात में
जुल्म उतने ही हो रहे हैं
जितने पहले होते थे तन पर
उस से ज्यादा आज
मन पर हो रहे हैं
तन के जुल्म को
लोग शायद भुला चुके होंगे
पर मन के जुल्म को
भुलाना नामुमकिन है
नहीं मिलेगी निजात कभी
नही आएगी राहत कभी
इस को सहना ही होगा
गर जीना है तो सहना ही होगा
अजीत कुमार तलवार
मेरठ