जुदाई की शाम
चांद भी वही है
सितारे भी वही हैं!
मंज़र भी वही है
नज़ारे भी वही हैं!!
कोई अगर नहीं है
तो वह हो सिर्फ़ तुम!
दरिया भी वही है
किनारे भी वही हैं!!
An Elegy Written By
Shekhar Chandra Mitra
(Judayi Ki Sham)
चांद भी वही है
सितारे भी वही हैं!
मंज़र भी वही है
नज़ारे भी वही हैं!!
कोई अगर नहीं है
तो वह हो सिर्फ़ तुम!
दरिया भी वही है
किनारे भी वही हैं!!
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Shekhar Chandra Mitra
(Judayi Ki Sham)