जीवन ही है सृजन में मूल
जीवन ही है
सृजन में मूल
खिलते है धरा पर
इसके फूल,
हर खूशबू
तुझसे
इत्र तो
भौतिक आयोजन
तू है तो
जिंदा हंस मेरा
नीर क्षीर
मुश्किल नहीं.
तू प्राण
तू चेतना
हरदिल जवां
तू भेदभाव
कदापि करती नहीं
उज्ज्वल हर समां
बेबाक
बेपनाह
हर हरकत
भले हो बेमकसद
कर दे जो समर्पित
पूजा वही
अर्चना वही.
यही धर्म स्वभाव मूल
बाकी सब लॉबिंग.
हंस डॉ. महेन्द्र