Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jun 2021 · 3 min read

जीवन दर्शन

“आप पर आरोप है कि देश के युवाओं को आप अपने विचारों, सिद्धान्तों व रचे ग्रन्थों से बिगाड़ रहे हैं। उनके हृदय में राजतन्त्र के प्रति नफ़रत और विद्रोह के बीज बो रहे हैं। आप नास्तिक हैं और ईश्वर की निन्दा के भी दोषी हैं। हमारी पुरानी परम्पराओं को आपने मज़ाक़ बना दिया है। अतः आपको इसके लिए विषपान द्वारा अपने प्राणों का त्याग करना पड़ेगा! यह राज आज्ञा है और इस देश का कानून भी!” राजा की ओर से सेवक ने दार्शनिक के ऊपर लगाए समस्त आरोप व सज़ा को भरी सभा के समक्ष बुलन्द आवाज़ प्रस्तुत किया।

“रहम, रहम” के स्वर से कक्ष गूंज उठा। न्यायधीशों ने, मंत्रिमण्डल ने राजा की ओर देखा। राजा के चेहरे पर सदैव की भांति स्थायी कठोरता देखकर और मानवीय करुणा भाव न पाकर भरी सभा में सभी निराश हुए।

यह लगभग तय हो चुका था कि दार्शनिक को विषपान करना ही पड़ेगा। जब ज़हर से भरा प्याला दार्शनिक के सम्मुख लाया गया तो उनसे पुन: कहा गया— “अब भी वक़्त है, यदि तुम अपनी विद्वता और सिद्धांतों की झूठी माला उतार फैंको तो हम तुम्हें मृत्यु का वरन नहीं करने देंगे। सम्राट तुम्हें अभयदान देंगे।” मगरूर सम्राट की ओर देखकर दार्शनिक ने ज़ोरदार ठहाका लगाया।

“मुझे देखकर क्यों हँसे तुम?” मगरूर सम्राट प्रश्न किया।

“सम्राट, मेरी मृत्यु तो आज होनी तय है, किन्तु आपकी मृत्यु, कब तक आपके निकट नहीं आएगी?” प्रश्न के उत्तर में दार्शनिक ने सत्ता के मद में चूर सम्राट से स्वयं प्रश्न किया। वह निरुतर था और अपनी मृत्यु का यूँ उपहास करने वाले इस महान दार्शनिक की जिंदादिली पर दंग भी!

“मुझे मृत्यु का अभयदान देने वाले सम्राट, क्या आप सदैव अजर-अमर रहेंगे? कभी मृत्यु का वरन नहीं करेंगे? यदि आप ऐसा करने में समर्थ हैं और मृत्यु को भी टाल देंगे तो मैं अपने सिद्धांतों की बलि देने को प्रस्तुत हूँ।” दार्शनिक की बातों का मर्म शायद सम्राट की समझ से परे था या वह जानकर भी अंजान बना हुआ था। चहूँ और एक सन्नाटा व्याप्त था। हृदय की धडकने रोके सभी उपस्थितजन अपने समय के महान दार्शनिक की बातें सुन रहे थे। जो इस समय भी मृत्यु के भय से तनिक भी विचलित नहीं था।

“मृत्यु तो आनी ही है, आज नहीं तो कल। उसे न तो मैं रोक सकता हूँ, न आप, और न ही यहाँ उपस्थित कोई अन्य व्यक्ति। यह प्रकृति का अटल नियम है और कठोर सत्य भी, जो जन्मा है, उसे मृत्यु का वरन भी करना है। इस अंतिम घडी को विधाता ने जन्म से ही तय कर रखा है। फिर मृत्यु के भय से अपने सिद्धांतों से पीछे हट जाना तो कोई अच्छी बात नहीं। यह तो कायरता है और मृत्यु से पूर्व, मृत्यु का वरन कर लेने जैसा ही हुआ न।” दार्शनिक ने बड़ी शांति से कहा।

मगरूर सम्राट के इर्द-गिर्द शून्य तैर रहा था। दार्शनिक की बातों ने समस्त उपस्थितजनों के मस्तिष्क की खिडकियों के कपाट खोल दिए थे।

“आपने ठीक ही कहा था कि मैं जीवित रहूँगा, मरूँगा नहीं क्योंकि मुझे जीवित रखेगी मेरे विचारों की वह अग्नि, जो युगों-युगों तक अँधेरे को चीरती रहेगी! लेकिन कैसी विडम्बना है सम्राट कि मेरे जो सिद्धांत और विचार मुझे अमरता प्रदान करेंगे, उनके लिए आज मुझे स्वयम मृत्यु का वरन करना पड़ रहा है।”

“तुम्हारी कोई अंतिम इच्छा?” सम्राट ने बेरुखी से पूछा।

“अंत में इतना अवश्य कहूँगा कि जीवन की सार्थकता उसके दीर्घ होने में नहीं, वरन उसका सही अर्थ और दिशा पा लेने में है।” दार्शनिक की विद्वता के आगे सभी नतमस्तक थे और इस असमंजस में थे कि कैसे सम्राट के मन में दया उत्पन्न हो और इस अनहोनी को टाला जाये।

…मगर तभी एक गहरा सन्नाटा सभी के दिमागों को चीरता हुआ निकल गया। जब दार्शनिक ने हँसते-हँसते विष का प्याला अपने होंठों से लगा लिया।

•••

Language: Hindi
4 Likes · 6 Comments · 310 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
View all
You may also like:
बुरा ख्वाबों में भी जिसके लिए सोचा नहीं हमने
बुरा ख्वाबों में भी जिसके लिए सोचा नहीं हमने
Shweta Soni
बेटी नहीं उपहार हैं खुशियों का संसार हैं
बेटी नहीं उपहार हैं खुशियों का संसार हैं
Shyamsingh Lodhi (Tejpuriya)
फुटपाथ की ठंड
फुटपाथ की ठंड
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
याद आती है
याद आती है
Er. Sanjay Shrivastava
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
■ आज का विचार-
■ आज का विचार-
*Author प्रणय प्रभात*
💐प्रेम कौतुक-238💐
💐प्रेम कौतुक-238💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
तितली संग बंधा मन का डोर
तितली संग बंधा मन का डोर
goutam shaw
योग
योग
लक्ष्मी सिंह
*बोले बच्चे माँ तुम्हीं, जग में सबसे नेक【कुंडलिया】*
*बोले बच्चे माँ तुम्हीं, जग में सबसे नेक【कुंडलिया】*
Ravi Prakash
" सर्कस सदाबहार "
Dr Meenu Poonia
माहिया छंद विधान (पंजाबी ) सउदाहरण
माहिया छंद विधान (पंजाबी ) सउदाहरण
Subhash Singhai
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
कवि दीपक बवेजा
बेशर्मी से ... (क्षणिका )
बेशर्मी से ... (क्षणिका )
sushil sarna
तिरंगा
तिरंगा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
3163.*पूर्णिका*
3163.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Ek galti har roj kar rhe hai hum,
Ek galti har roj kar rhe hai hum,
Sakshi Tripathi
★संघर्ष जीवन का★
★संघर्ष जीवन का★
★ IPS KAMAL THAKUR ★
मजा आता है पीने में
मजा आता है पीने में
Basant Bhagawan Roy
मंत्र की ताकत
मंत्र की ताकत
Rakesh Bahanwal
तेरे जागने मे ही तेरा भला है
तेरे जागने मे ही तेरा भला है
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Dil toot jaayein chalega
Dil toot jaayein chalega
Prathmesh Yelne
यही पाँच हैं वावेल (Vowel) प्यारे
यही पाँच हैं वावेल (Vowel) प्यारे
Jatashankar Prajapati
देखिए खूबसूरत हुई भोर है।
देखिए खूबसूरत हुई भोर है।
surenderpal vaidya
J
J
Jay Dewangan
कन्यादान
कन्यादान
Mukesh Kumar Sonkar
सम्मान में किसी के झुकना अपमान नही होता
सम्मान में किसी के झुकना अपमान नही होता
Kumar lalit
"गुल्लक"
Dr. Kishan tandon kranti
नरक और स्वर्ग
नरक और स्वर्ग
Dr. Pradeep Kumar Sharma
बिना कोई परिश्रम के, न किस्मत रंग लाती है।
बिना कोई परिश्रम के, न किस्मत रंग लाती है।
सत्य कुमार प्रेमी
Loading...