जीवन चक्र
अपने जीवन मे मैंने इस सड़क को देख हैं पल पल
मैं मुद्दतो से खड़ा हुँ यूं ही मुझे जल्दी नही कोई
वक्त बहुत बिताया मैंने आप सब को आते जाते देख
अब भी हड़बड़ाहट भी नही मुझे जल्दी सूख जाने की
पर अब कोई जुनून बाकी नही रहा मेरे अंदर
न जाने कब बोया गया था या खुद ही उग गया था
अभी तक काटा भी नही गया हूं क्योंकि फल देता था
अपने जीवन का हर पल फसल रूप में समर्पित किया
किसी भी ऋतु में अपने कर्म में लगा रहा मैं
मुझे मुद्दत हो गई यूं ही सड़क किनारे सड़क को देखते
कभी जवां होने पर मन भी हर्षित था अपने पर गर्व था
न जाने कितने साल लगते है मेरी स्थिति तक आने में
बूढ़े अचानक नहीं होते लंबा समय लगता हैं जिन में
जीवन की लंबी लड़ाई भी वर्षों लड़नी पड़ती हैं
मेरी स्थिति तक आने में जीवन से जूझना पड़ता हैं
लंबेजीवन को जीने का नाम ही धीरज होता हैं
ईश्वर तय करते हैं कब क्या होना हैं ये सब तय है
जन्म मरण बंधन दम्भ सब आना जाना चक्र हैं
ये सब जीवन के अलग अलग रंग हैं सुखद पल हैं
पर इस रूप में आने तक पल पल जीना पड़ता हैं
तुम मुसाफिर हो तुम क्यों चिंतित हो सब प्रकर्ति हैं
इस सारे निश्चित खेल में ईश्वर की लीला ही हैं
ना हिला सकेगा पत्ता कोई यदि ऊपर वाला न चाहे तो
सृष्टि का नियम जान ले तूँ मुसाफिर आना जाना जीवन हैं
मेरे रूप तक आने में जीवन से सामना करना हैं हर क्षण
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद