जीवन क्या है
जीवन क्या है ?
भूल चूका हूँ ,जीवन क्या है ?जीवन के आयामों को।
जीवन एक मरु- स्थल है ,ऐसा लगता है मुझको।।
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जहाँ पर पानी बूँद नहीं एक ,
केवल प्यासा स्थल है।
हर पल एक छलावा है,
पलपल में निश्छल छलहै।
लाखों जन्म गुजर जाते हैं,इसको महज़ समझने को।
जीवन एक मरु- स्थल है,ऐसा लगता है मुझको, ।।
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माया बनकर जल की धारा –
मरीचिका में बहती है।
मृग -मानव को स्फुरदीप्ति से –
पल- पल, छिन- छिन छलती है।
प्यासा मैं हूँ ,प्यासा जग है :
प्यासा देखो! वो मृग है।
भाग रहा है जो अविरलअपनी प्यास बुझाने को।
जीवन एक मरु- स्थल है ,ऐसा लगता है मुझको।।
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जीवन भी हो चला पूर्ण अब ,
लेकिन मैं प्यासा का प्यासा।
सांसें बूढी हुईं हैं लेकिन –
बंधी हुई है मन में आशा।।
जीवन क्या है ?क्या कोई समझ पाया इसको।
जीवन एक मरु-स्थल है,ऐसा लगता है मुझको।।