** ” जीवन का लक्ष्य : अपने अस्तित्व का बोध ” **
हेलो किट्टू ❗
किसे ने पूछा आपके जीवन का उद्देश्य क्या है ❓
मैंने कहां ” जिस दिन मेरा उद्देश्य पुरा होगा उसके बाद कोई उद्देश्य नहीं रहेगा , मैं आराम से गहरी नींद में सो जाना चाहूंगी । ”
व्याख्या :-
मैंने अभी तक कोई उद्देश्य नहीं बनाया ना ही आई.ए.एस. बनने का ना ही डॉक्टर , ना ही इंजीनियर , ना ही सरकारी नौकरी पाने का , ना ही कोई व्यवसाय करने का ।
अभी तक के जीवन सफर में बहुतों को देखा , जाना , महसूस किया , खुद को उस जगह रख कर सोचा तो सिर्फ इतना ही निष्कर्ष निकला कि ” इस भीड़ भरी संसार में खो जाने से पहले खुद का अस्तित्व जान सकूं ।मेरे जीवन का लक्ष्य अपने अस्तित्व को जानना है । जानना इसलिए है ताकि मैं विश्वास कर सकूं । विश्वास भी इसलिए करना है ताकि अपने पहला और अंतिम लक्ष्य प्राप्त कर सकूं और संतुष्ट हो कर मेरी आत्मा और इस शरीर के संबंध और संयोग का अर्थ समझ जाऊ। ”
मुझे लगता है कि ये जो उद्देश्य निश्चित किए संसार के अधिकतम व्यक्ति प्रगति और प्रतिष्ठा के प्राप्ति के हर चरण पर हमेशा नया उद्देश्य बनाते जाते हैं और असंतुष्टि के साथ आत्मा को अपने भौतिक शरीर से अलग होने की दशा में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं ।
जैसे –
1. जब कोई व्यक्ति अपने जीवन यापन के लिए अत्यधिक धन अर्जित करने की कामना में एक उच्च कोटि का पद प्राप्त कर लेता है उसके बावजूद भी वह भौतिक सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए लालायित होता है । पर्याप्त धन हो जाने के बाद भी वह असंतुष्टि में जीता है फिर वो बड़ा महल , गाड़ी , नौकर , आभूषण आदि कामनाओं की पूर्ति में लग जाता है । यह असंतुष्टि आगे और बढ़ती जाती है ।
इन सभी उद्देश्य के बीच वह संसार के भीड़ का हिस्सा बन जाता है और तब तक वो खुद के वास्तविक रूप को भूला चुका होता है ।
2. रेलगाड़ी में लगभग सबने यात्रा की ही होगी ।
– उस में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें पता होता हैं रेलगाड़ी का गंतव्य जानते हैं , और उनका गंतव्य जो होता है वो वहीं उतर जाते हैं । अतः अपने गंतव्य के पहूंचने के लालसा में केवल समय पर ध्यान देती है और जब तक वह अपने गंतव्य तक नहीं पहुंचते अन्य आंनद को नजरंदाज करते हैं ।
– कुछ रोजमर्रा के दिनचर्या के यात्री होते हैं । अतः समय पर पहुंचने और देर होने के भय से यात्रा का आनंद नहीं ले पाते ।
– कुछ भटके हुए होते हैं जो जिस स्टेशन पर ज्यादा यात्री उतरते हैं उन्हें देख वहीं उतर जाते हैं । अतः वो उलझन में यात्रा का आनंद नहीं उठा पाते और न ही अपना अनुभव बता पाते हैं ।
– कुछ सिर्फ हर स्टेशन को देखने और रेल में यात्रा का आनंद लेने के लिए जाते हैं । अतः वो अत्यधिक खुश और संतुष्ट होते हैं और वापिस आ कर उसका वर्णन करते हैं ।
??
जरूरी नहीं बिना किसी लक्ष्य वाले व्यक्ति का जीवन पशु समान है । हो सकता है वह वह जीवन की इस यात्रा मैं खुद के अस्तित्व को ढूंढ रहा हो । वह इस संसार के भीड़ में भेड़ चाल से परे जीवन के सफर का आनंद ले कर संतुष्ट हो जाना चाहता हो ।
” लक्ष्य तो वह होना चाहिए जिससे संतुष्टि प्राप्त हो ना कि असंतुष्टि या लालच । ”
? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति ✍️
नई दिल्ली