जीना नहीं तेरे बिना
जब से साथ तुम्हारा पाया जब से तुम्हें पहचाना।
तुमने मुझे सिखाया किसे कहते हैं साथ निभाना।।
दुख की परछाई हो या हो मुसीबतों के अंधेरे।
इनसे पहले ही आ जाते तुम्हारे सहारों के घेरे।।
पल पल का यह अपनापन मुझको देता है जीवन।
साथ तुम्हारा मांगे मेरी हर सांस की आवन-जावन।।
मेरी उमर भी लग जाए तुमको छूने न पाएं बलाएं।
हर क्षण हर पल मेरा दिल देता है तुमको दुआएं।।
—रंजना माथुर दिनांक 28/02/2015
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©