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24 Apr 2021 · 1 min read

जिन्दगी यूं ही क्यों , गुमनामी के निशाँ हो जाए

जिन्दगी यूं ही क्यों , गुमनामी के निशाँ हो जाए

जिन्दगी यूं ही क्यों , गुमनामी के निशाँ हो जाए
क्यों न हम , मन में आशा और उल्लास के दीपक जलाएं

जिन्दगी यूं ही क्यों, तिरस्कार के समंदर में खो जाए
क्यों न हम स्वाभिमान को, अपने उत्कर्ष का हमसफ़र बनाएं

जिन्दगी यूं ही क्यों , अंतहीन सफ़र की मुसाफिर हो जाए
क्यों न हम अपने प्रयासों में , समर्पण की रोशनी जगाएं

जिन्दगी यूं ही क्यों, अर्थहीन प्यास का समंदर हो जाए
क्यों न हम जिन्दगी में , शालीनता को अपना हमसफ़र बनाएं

जिन्दगी यूं ही क्यों, गुमसुम सी अँधेरे में खो जाए
क्यों न हम आशा का दीपक जला, इसे रोशन बनाएं

जिन्दगी यूं ही क्यों, संसार की माया – मोह में खोकर रह जाए
क्यों न हम इबादत को अपनी मुक्ति का जरिया बनाएं

जिन्दगी यूं ही क्यों, खुदगर्जी के समंदर में खो जाए
क्यों न हम रिश्तों की , एक खुशनुमा महफ़िल सजाएं

जिन्दगी यूं ही क्यों, निराशा के बवंडर में खो जाए
क्यों न हम अपने साहस के बादलों से सजा , एक आसमां सजाएं

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 151 Views
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Books from अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
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