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13 Feb 2021 · 2 min read

जिन्दगी ने एक दिन मुझसे पूछा

जिन्दगी ने एक दिन मुझसे पूछा

जिन्दगी ने एक दिन मुझसे पूछा

क्या है तेरे होने का मकसद ?

इस प्रश्न ने

बहुतेरे प्रश्न उपजा दिए

आखिर मुझे मालूम तो

होना ही चाहिए

इस धरा पर मेरी

उपस्थिति का मर्म

मेरे हर एक कर्म का मर्म

मेरे हर एक प्रयास की परिणति

मुझे तो यह भी ज्ञात नहीं

मेरे कर्म सुकर्म की भावना से प्रेरित या फिर……………

या यूं ही ………

इस पेट की आग

और नेत्रों की लालसा में उलझा

बार – बार गिरने और

उठने के प्रयास की विफलता

या फिर कहें सफलता

आखिर किसके लिए और क्यों ?

स्वयं, परिवार या सगे सम्बन्धियों के लिए

आखिर क्या है मेरे होने का मकसद ?

क्या मैंने कभी स्वयं से पूछा

जीवन का उत्तम मार्ग क्या है ?

या फिर…….

कौन है वह …?

जो मुझे इस धरा पर लाया

क्या मैं उस परम तत्व का अंश हूँ ?

या फिर …..

अनसुलझे प्रश्नों का रहस्य

गहरा होता जाता है

जैसे – जैसे मैं इसके

भीतर तक प्रवेश करने लगता हूँ

कौन है वो अदृश्य शक्ति ?

अतिमानवीय शक्ति

जिसके होने का एहसास /आभास

मानव रूप में सहज ही हो जाता है

मेरे चिंतन में कौन विराजे ?

यह एक अति गूढ़ प्रश्न है

मन चंचल और सोच दुनिया से परे

बार – बार दिशा परिवर्तित करने की व्यथा

बार – बार असमंजस की स्थिति

क्यों कर ये भ्रम की स्थिति ?

आखिर स्थिरता का अभाव क्यूं ?

क्यूं कर नहीं हो जाता सब कुछ सामान्य ?

क्यूं कर पीड़ा का दौर

समाप्त ही नहीं होता

क्यूं कर पतन की ओर है

अग्रसर मानव

चाहकर भी आध्यात्मिक उत्थान

जीवन का अभिन्न अंग नहीं रहा

ऐसा क्या है ?

जिसने बांधकर रखा है इस जीवन को

क्या वह है ?

लालसा, अभिलाषा, चाह, अतिमहत्वाकांक्षा , कामना

वो भी

केवल भौतिक जगत की

कब रुकेगा ?

यह जीवन का अनैतिक सफ़र

कब होगा पूर्ण उत्थान ?

पूर्ण उत्थान वो भी आध्यात्मिक

आइये

इस प्रश्न को अपने जीवन का

अंतिम सत्य समझ

बढ़ चलें उस

सत्य की ओर

जो हमें

इस भौतिक जगत से परे

ले चले उस उन्मुक्त गगन की ओर

जहां चारों ओर

आध्यात्मिक सुख की छटा

राह देख रही है हमारा

आइये

उस सुखद अनुभूति की ओर

बढायें कुछ कदम

आखिर

हम हैं मानव

और हमारा उत्थान

हमारी प्रथम प्राथमिकता हो

यही हमारी इस धरा पर हो

उपस्थिति का अंतिम सत्य

तो फिर विलंब कैसा ………?

Language: Hindi
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