जिद है।
तुमसे मिलने की जिद है हमारी निगेहबान रहे।
हम रहे ना रहे आप हमारी शब्दों में पहचान रहे।
गुलों से टूट कर हम क्यों न बिखर जाएं यार।
हम रहे ना रहे मेरे लफ्जों में हमारी नीमजान रहे।
बड़े लंबे सफर से गुजर गए हैं हमारी रुहजान रहें।
हमारी गैर मौजूदगी का एहसास आपको पहचान रहें।
रकीबों की तरह हम फकीर हैं आज तेरे दर पर।
मेरे सपनों का ख्याल हमारी नीमजान रहे।
ये रातों की तड़पाती हुई रूहे आज हमारी पहचान रहे।
मेरे दिलों के ख्वाहिशों की उमड़ती हुई निगेहबान रहे।
ये जों अवध की तड़पाती हुई हवाएं जो है बेजार।
हम रहे ना रहे मेरे लफ्जो में आप नीमजान रहे ।
अवधेश कुमार राय “अवध”
धनबाद