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24 Oct 2021 · 1 min read

जितनी बार पढ़ा है तुमको

#गीत

एक प्रणय के संबोधन में
हमने कितने नाम दिए।
जितनी बार पढ़ा है तुमको
उतने ही अनुवाद किये।

डूबा रहता हूँ यादों में
दृग से निर्झर नीर बहे।
कलम हमारी साँस तोड़ती
अक्षर – अक्षर सिसक रहे।
उमड़ रही है विरह – वेदना
बिखर गए उर भाव प्रिये।
जितनी बार पढ़ा है तुमको
उतने ही अनुवाद किये।

नयनों में छवि बसी तुम्हारी
याद मुझे वो भोलापन।
विगत वर्ष से तरस रहे हम
उन हाथों की एक छुअन।
भटक रहा हूँ बंजारों सा
प्रेमिल हृदय उदास लिये।
जितनी बार पढ़ा है तुमको
उतने ही अनुवाद किये।

मत पूछो! यादों में तेरी
दिल पर कितने घाव लगे।
एकाकीपन के जीवन में
हम तो अनगिन रात जगे।
प्रेम-पिपासा में हमने बस
नफरत के हैं घूँट पिये।
जितनी बार पढ़ा है तुमको
उतने ही अनुवाद किये।

अभिनव मिश्र “अदम्य”

Language: Hindi
Tag: गीत
195 Views
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