जिंदगी
ढ़लती जाती जिन्दगी, करे उम्र की जिक्र।
उलझन अब बढने लगीं, मुखरे पर है फिक्र।।
मुखरे पर है फिक्र, सभी साथी अब छूटे।
पकड़ लिये हैं खाट, घरौंदे सारे टूटे।
सुप्त पड़ी सब आस, नहीं अपनी अब चलती।
एक समय के बाद, जवानी सबकी ढ़लती।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली