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7 Dec 2017 · 1 min read

जिंदगी है खेल नहीं

खेल सी हो चली है
कैसी जिंदगी है ये
अपनो को ही नोच रहे सब
कैसी दरिंदगी है ये
शर्मिन्दगी होती है महसूस
क्या यही इनका काम है
करता है एक गलत
पर सारी कौम बदनाम है
आदत डाल लें धोखे की
आज तूने दिया किसी को
कल वो किसी और को देगा
यूँ ही मिलेगा एक दिन सभी को
कितनी भी कर लो कोशिश
झूठ की ना नींव हिलेगी
ईंट के बदले पत्थर नही
अब गोली मिलेगी
ये खेल ज़िन्दगी का
अब गंदा हो गया है
सही गलत दिखता नही इन्हें
इंसान लालच में अंधा हो गया है

अंजनी ‘कुमार’ मिश्रा
भोपाल(म.प्र.)

Language: Hindi
194 Views
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