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12 Dec 2020 · 1 min read

जायें तो जायें कहाँ

सच-झूठ का फ़र्क़ कोई हमें समझाए,
जायें तो जायें कहाँ कोई तो बताए।

यहाँ हर चेहरे पर झूठ का नकाब है,
मासूम चेहरे पर फ़रेब का हिजाब है।
लोग सिर्फ अपनों का स्वाँग रचते हैं,
दिल तोड़कर चुपचाप ही चल देते हैं।

रखते सदा दिल में पाप को छुपाए,
जायें तो जायें कहाँ कोई तो बताए।

इस संसार में जो भी रिश्ते नाते हैं,
स्वार्थ बस ही अपना फ़र्ज़ निभाते हैं।
जब आ जाए जीवन में विपत्ति काल,
हर रिश्ते नाते स्वयं ही बिखर जाते हैं।

हम किस तरह इन रिश्तों को निभाएँ,
जायें तो जायें कहाँ कोई तो बताए।

अब तो जहाँ से आए हैं वहीं जाना है,
अपने कर्मों का हिसाब भी दिखाना है,
एक दिन हमें सब छोड़कर जाना है,
वहाँ बाबुल से नज़रें भी मिलाना है।

चुनर में लगे दाग को कैसे हम छुपाएँ,
जायें तो जायें कहाँ कोई तो बताए।

?? मधुकर ??

(स्वरचित रचना, सर्वाधिकार©® सुरक्षित)
अनिल प्रसाद सिन्हा ‘मधुकर’
ट्यूब्स कॉलोनी बारीडीह,
जमशेदपुर, झारखण्ड।

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 484 Views
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