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11 May 2017 · 1 min read

“ज़िंदगी ज़ख़्म की कहानी है”

“ज़िंदगी ज़ख़्म की कहानी है”
बह्र-२१२२ १२१२ २२
काफ़िया-आनी
रदीफ़-है

ज़िंदगी ज़ख़्म की कहानी है।
प्यार में दर्द ही निशानी है।

हसरतें क्यों ज़ुबाँ पे’आई हैं
साँस थमती नहीं दिवानी है।

आज भी इंतज़ार है तेरा
प्यास दिल की तुझे बुझानी है।

मुद्दतों बाद चाँद निकला है
ज़ुल्फ़ में कैद क्यों जवानी है?

दिल लगा के सुकून खोया है
ज़िंदगी मौत की रवानी है।

अलविदा कह रहा सुनो तुम से
आख़िरी रस्म भी निभानी है।

दीप आ कब्र पे जला देना
चैन की नींद भी दिलानी है।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका- “साहित्य धरोहर”
महमूरगंज, वाराणसी(मो.-9839664017)

1 Like · 222 Views
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