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14 Oct 2019 · 1 min read

ज़र्फ़

मुझे कांधों पे उठाना चाहता है
ज़र्फ़ मेरा आजमाना चाहता है

बितानी थी मुझे ज़िंदगी अपनी
मगर वह रात बिताना चाहता है

जुदाई चाहता है वह भी मुझसे
यही तो सारा ज़माना चाहता है

मिज़ाज में ज़रूरी है आजिज़ी
अगर इज्जत कमाना चाहता है

खुद ही फेर लीं हमनें नज़रें अपनी
दाग चेहरे के कोई छुपाना चाहता है

उसने रख दिया है सियासत में कदम
गरीबों का हक़ उड़ाना चाहता है

4 Likes · 4 Comments · 190 Views
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